संदेश

किसान वो

       🌹 नमस्कार 🌹           प्रस्तुत कविता उस व्यक्तित्व को केंद्र में रखकर लिखी गयी है। जो अपनी समस्याओं को जानते हुए भी ,जन कल्याण की भावना से कार्य करता है।,,,,,,वह है एक 'साधारण किसान',,,,             वह यह जानता है कि बारिश होने पर मेरे घर के छप्पर से सबसे पहले पानी टपकेगा , परन्तु फिर भी वह बारिश होने की इच्छा रखता है।            सचमुच किसान ,बिधाता की सबसे सच्ची सेवा करता है। विधाता ने पेड़ पौधे बनाये और किसान भी पेड़ ,पौधे लगाता है। इस प्रकार वह उस परम पिता की सेवा करता है,,,,,   🌸 🌸🌸🌸🌸           देख जब बादल,                     घुमड़ते हैं आसमान,            फूला न समाता है,                प्यारा सा किसान वो।   कर्मयोगियों कि भांति,          दिन रात मेहनत ,               कर पालता है,                   परिवार इंसान वो।                        🌼🌼    सृष्टा के काजों में,         करके सहायता प्यारे,              बन जाता है,                  अन्नदाता भगवान वो।    टिप टिप वाला घर,         भूलकर रोज रोज,               ताकता ही रहता,              

प्रेम की कविता,,,,

                🌸नमस्कार🌸   प्रस्तुत है आशू की एक सुन्दर प्रेम की कविता,,,,,     🌸 प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में कुछ उपलब्धियों,साधनों, भौतिक या अभौतिक वस्तुओं आदि को पाना चाहता है , अतएव प्रस्तुत कविता इस धारणा पर ही आधारित है,,,,,,             🌸🌹🌼   तुम मस्त लटों के गहरे वन,   चांदनी लपेटे आ जाओ।     संपूर्ण चमन के फूलों की ,    खुशबु को समेटे आ जाओ ।           🌸🌹🌼    तेरे होंठ पे फूलों को रख दें,    तो फूल तुरत मुरझा जाए।    गालों का रंगभवन देखे,      भंवरों का दल इठला जाए।         मेरे दिल की अंगड़ाई को,बाहों में समेटने आ जाओ।        तुम मस्त लटों,,,,,,,,,           🌸🌹🌼      दिल प्यासा बैठा है मेरा,       तू बदली बनके आ जाए।        बिरह बन खोया जाता हूँ,        बाहों का सहारा मिल जाए।         तन मन की तपन से व्याकुल हूँ,         शीतल पुरवा महका जाओ।         तुम मस्त लटों,,,,,,             🌸🌹🌼    आँखें नजरें मोहनी तीर,    जो देखे बिंधा चला आये ।     जुल्फें हैं लहरती प्रेमपाश,     कोई भी न बचके जा पाए।     जीवन, पतझड़ ने घेर लिया,     रति

वर्तमान मानवीय सम्बन्ध

🌹  शुभ प्रभात🌹  ,,,,एक बार फिर आपके समक्ष आशू की एक कविता ,,,,,,      जो कि वर्तमान  मानवीय वेदनाओं से आहत हमारे ह्रदय के  भावों से उत्पन्न हुई,,, 🌸   आज हालात बदतर हुए क्या कहें,    बंद भवनों में आंधी समाने लगी, डूबे थे लोग जो प्रेम के नीर में,    धर्म की आग उनको जलाने लगी, 🌸    हर जगह हर कोई ठीक था ठीक है,     फिर क्यों आँखे ये आँशु बहाने लगी,     नफ़रतें है भरी जेहनों की कशिश,     बन के काँटा दिलों को दुखाने लगी, 🌸     हर कोई पूंछता दूसरे व्यक्ति से,     आप पर बदलियाँ क्यों ये छाने लगी,      पर कोई झांकता अपने अंदर नहीं ,     खुद की बाहें क्यों दिल को छुपाने लगी,  🌸   हर तरफ गर्दिशें हर तरफ ना नुकर,    सैकड़ों अवगुणों की दुकानें लगी,      कौमें तो आज खुद की ही मक्कारी को,   राजनीती के दामन छुपाने लगी, 🌸     बन के खुदगर्ज अब "आशू"की मन्नतें,    अपने भगवन से आशें लगाने लगी,    हे प्रभु प्रेरणा व सहन शक्ति दो,     ये आग रातों की नींदे उड़ाने लगी, 🌸🌹🌸🌹🌸🌹🙏🙏🙏🙏🙏   ----धन्य बाद,, यदि किसी प्रकार की त्रुटि हो तो कृपया अवगत अवश्य कराएं।